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लेखनी कहानी -23-Jun-2022 भुतहा मकान

भाग 3 : साक्षात् दर्शन  


एक विशेष प्रकार की आवाज सुनकर राजन की नींद खुल गई । आवाज ऐसी आ रही थी जैसे कोई सांप रेंग रहा है । उसने धीरे से अपनी आंखें खोली मगर उसे कुछ दिखाई नहीं दिया । उसे लगा कि उसने डर के मारे आंखें खोली ही नहीं थीं । उसने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी थोनों आंखें मसली फिर खोलीं । अभी भी कुछ दिखाई नहीं दिया । राजन सोच में पड़ गया कि आखिर माजरा क्या है ? 

राजन के दिमाग में अचानक कौंधा कि वह शायद बिजली बंद करके सोया था । पर उसे याद आया कि वह तो बिजली जली छोड़कर बिसार लेटा था और हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा था कि अचानक उसकी आंख लग गई । लेकिन पूरे मकान में ये अंधेरा क्यों है ? शायद लाइट चली गई होगी , राजन के मस्तिष्क में एक क्षण को यह बात आई लेकिन अगले ही पल उसने गर्दन घुमाकर बाहर की ओर देखा तो पता चला कि रोड लाइट जल रही थी । "ये क्या माजरा है" ? राजन को कुछ समझ नहीं आ रहा था । जब दिमाग में भय समाया हुआ हो तो फिर वहां बुद्धि और ज्ञान नहीं रहते हैं । दोनों में छत्तीस का आंकड़ा है । 

राजन ने सोचा कि वह उठकर लाइट जला दे । क्या पता बंद करके सोया हो ? लेकिन उठना कोई कम जोखिम का काम था क्या ? पर उठना तो पड़ेगा । अंधेरे में तो हालत पतली हो जाएगी । वह "बजरंग बाण" जपता जपता पलंग से खड़ा हुआ । और अपनी पूरी आंखें खोलकर चारों तरफ देखकर वह एक दिशा की ओर बढा । चूंकि मकान नया था इसलिए उसे यह पता नहीं था कि कौन सी दीवार पर स्विच बोर्ड लगा हुआ है । वह टटोलते टटोलते आगे बढने लगा । सामने दीवार थी , उससे टकरा गया । 
"साली इस दीवार को भी यहीं होना था ? पता नहीं किस आर्किटेक्ट ने मकान बनाया है जो कमरे के बीचोंबीच ये दीवार खड़ी कर दी है । और मालिक ने भी नहीं देखा इसे" 

वह दीवार के सहारे सहारे टटोल टटोल कर चलने लगा । आखिर वह स्विच बोर्ड तक पहुंच ही गया । स्विच बोर्ड को टटोल कर देखा तो पता चला कि स्विच तो ऑन ही था । राजन को थोड़ा सा आश्चर्य हुआ । मगर उसे याद आया कि शायद कोई "एम सी बी" गिर गई हो " ? 

वह टटोलते टटोलते मैन स्विच के पास पहुंचा । तब तक उसकी आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थीं । उसने सारी एम सी बी देख ली मगर कोई भी एम सी बी गिरी हुई नहीं थी । मतलब सब एम सी बी का "चरित्र" उज्ज्वल था । वैसे भी गिरे हुए तो "छिछोरे" ही होते हैं । 

वह वापिस पलंग पर,आकर बैठ गया । अब उसका दिमाग काम करने लगा । उसने लाइट ऑन कर,रखी थी मगर लाइट बंद कैसे हुई । सबकी लाइट आ रही है लेकिन उसके घर की लाइट बंद है । एमसीबी भी "उठी" हुईं हैं । फिर माजरा क्या है ? यह लाख टके का सवाल था । 

वह कुछ और सोचता उससे पहले ही उसे सैकड़ों बिल्लियों के गुर्राने की सी आवाजें आने लगीं । वह एकदम से डर गया और अपने दोनों हाथ अपने कानों पर कसकर रख दिए । मगर आवाजें तो पिघले हुए लावा की तरह उसके कानों में घुसी जा रही थी । वह अपने बिस्तरों में दुबक गया और भरी गर्मी में भी चादर ओढकर मसामूंद होकर कुकड़ कर लेट गया ।  घुटने छाती में घुसा लिए ।कान कसकर बंद कर लिए और मन ही मन हनुमान चालीसा का अखंड पाठ करने लगा । 

थोड़ी देर बाद उसे महसूस हुआ कि वो आवाजें आनी बंद हो गई हैं । उसने थोड़ी चैन की सांस ली । थोड़ा सा रिलैक्स हुआ और अपने पैर पूरे खोल लिए । चादर भी हटा ली और आंखें भी खोल लीं । हनुमान चालीसा का पाठ बंद हो गया था । वह खामोशी से घर का निरीक्षण करने लगा । लेटे लेटे ही उसकी आंखें चारों ओर घूमने लगीं । 

उप्र छत पर एक छिपकली घूम रही थी जो घात लगाकर कीड़ों को खा रही थी । उसे वह छिपकली "भूत" की तरह लगी जो उस पर घात लगाए बैठी हो । वह सिर से लेकर पैर तक कांप गया । उसने अपनी निगाहें छिपकली से हटा लीं और खिड़की से बाहर की ओर देखने लगीं । बाहर अंधेरा था और कुछ दिखाई नहीं दे रहा था । वह अभी कुछ और देखता इससे पहले उसे कुछ आवाजें सुनाई देने लगीं । यह तो किसी आदमी के चलने की पदचाप थीं । "क्या कोई चोर घुस आया है ? अगर आ भी गया है तो वह मेरे हाथो से बचकर जाएगा कहां" ? 

राजन यह सोच ही रहा था कि उसे लगा वे पदचाप उसके एकदम पास आ गईं हैं । उसने चौंककर इधर उधर देखा मगर उसे कोई नजर नहीं आया । उसे बड़ा ताज्जुब हुआ कि किसी की पदचाप तो सुनाई दे रही हैं मगर दिखाई कुछ भी नहीं दे रहा है । उसे विश्वास हो गया था कि यह "भूत" ही है जो उसके कमरे में चहलकदमी कर रहा है मगर दिखाई नहीं दे रहा है । अब तो उसके बचने का कोई भी रास्ता नजर नहीं आ रहा है । 

उसने बजरंग बली जी की मूर्ति अपने सीने से चिपका ली और एक बार फिर से "भूत पिशाच निकट नहीं आवे , महावीर जब नाम सुनावे" का "अखंड जाप" शुरू हो गया । 
कबीरदास जी ने सही कहा है कि भगवान को सुख में कौन याद करता है । सब लोग  दुख या संकट में ही तो याद करते हैं भगवान को । राजन भी कोई अलग से बना हुआ इंसान तो था नहीं । वह भी जमाने का दस्तूर निभा रहा था । 

अखंड जाप करते करते उसे बहुत देर हो गई थी । उसका सारा ध्यान हनुमान जी पर था भूत पर नहीं । शायद इसी का चमत्कार हो कि उसे अब पदचाप सुनाई देनी बंद हो गई थी । उसने मन ही मन हनुमान जी को प्रणाम किया और सोचा कि वास्तव में हनुमान जी में कुछ तो बात है वरना अब तक वह जिंदा नहीं बचता । 

उसमें हिम्मत का संचार होने लगा । उसे विश्वास हो गया था कि जब तक वह हनुमान जी का स्मरण करता रहेगा "भूत" उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा । यह सोचकर वह थोड़ा आश्वस्त हुआ । एक बार फिर से उसने अपने कमरे में चारों ओर नजरें घुमाकर देखा । उसे कोई नजर नहीं आया । नीचे फर्श को भी देखा , मगर वहां भी कुछ नहीं था । 

अचानक उसका ध्यान खिड़की की ओर गया । उसकी सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई । खिड़की के बाहर वह "भूत" खड़ा था । उसने साफ साफ देखा था कि एक धड़ खिड़की के बाहर खड़ा है । ऐसा लगता है कि जैसे किसी आदमी का गला रेत दिया हो । आज उसने साक्षात वह "बिना सिर वाला भूत" देख लिया था । अब किसी तरह के शक शुबहा की कोई गुंजाइश नहीं थी । राजन के प्राण ही नहीं निकले बाकी सब कुछ निकल गया । वह बिस्तर पर ही बेहोश होकर गिर पड़ा । 

क्रमश: 

हरिशंकर गोयल "हरि" 
30.6.22 

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5 Comments

Shrishti pandey

13-Jul-2022 08:10 AM

Very nice

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Raziya bano

02-Jul-2022 09:41 AM

Beautiful story

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Abhinav ji

02-Jul-2022 07:59 AM

खतरनाक हैं ऐसे भूत को देखना. बहुत खूब

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